Saturday, October 3, 2009

प्यार के बोल लगते भले

धूप सर पर रही छाँव पैरों तले।
फूल जितने चुने ख़ार उतने मिले।।


मन हज़ारों दुःखों से घिरा है मगर,
हँस रहा हूँ ज़माना जले तो जले।

आशियाने करें लोग रोशन मगर,
राह में और दिल में अँधेरा पले।

आदमी नफ़रतें ही बढ़ाता रहा,
टूटते ही रहे प्यार के सिलसिले।

गीत अपना सभी गुनगुनाते रहे,
कौन समझा यहाँ वक़्त के फैसले।

आज माँ की दुआएँ असर कर गईं,
ख़ुश रहे तू सदा ख़ूब फूले-फले।

प्यार के बोल अल्लाह के बोल हैं,
इसलिए प्यार के बोल लगते भले।

ऐ ख़ुदा है हुकूमत तिरी हर जगह,
दूर कर ज़िन्दगी से सभी ज़लज़ले।

ज़िन्दगी भूलती जा रही है हमें,
मौत हमसे कहे आ लगा ले गले।

'प्रेम' उस ख़्वाब ने नींद ही छीन ली,
लाख अरमान जिस ख़्वाब में थे पले।
(रचनाकाल- नवम्बर-2003)

4 comments:

  1. भाई बरेलवी, अच्छा लगा बरेली का एक और जुडा ब्लॉग से . लिखते रहिये . एक सलाह धीरे धीरे चले अपनी रचनाये एक साथ मत डाले .

    ReplyDelete
  2. क्या अंदाज़ है!

    एग्रीगेटरों के द्वारा अपने ब्लॉग को हिंदी ब्लॉग जगत परिवार के बीच लाने पर बधाई।

    सार्थक लेखन हमेशा सराहना पाता है।

    मेरी शुभकामनाएँ

    बी एस पाबला

    ReplyDelete
  3. बहुत बढिया. लिखते रहिये. स्वागत है

    ReplyDelete