Wednesday, October 7, 2009

दूरियाँ दिल की बढ़ा गया

वह फ़ैसला अपना सुना गया।
कुछ दूरियाँ दिल की बढ़ा गया।।


जैसे अदू को देखता अदू ,
यूँ देखता मुझको चला गया।

मेरे नयन में अश्क छोड़कर,
वह शाद-सा होता चला गया।

जबसे उसे दौलत भली लगी,
वह मुझको भुलाता चला गया।

वह वक़्त में बहता चला गया,
मैं वक़्त से लड़ता चला गया।।

उसकी सदा में एक दर्द था,
पागल जो बोलता चला गया।

उसने ज़माने की फ़क़त सुनी,
लेकिन किसी का घर चला गया।

सूरत किसी की 'प्रेम' देखकर,
इक नाम जैसे याद आ गया।

(रचनाकाल- 1998)