Tuesday, November 17, 2009

आईने की तरह

दिल जो टूटे कभी आईने की तरह।
फिर वो जुड़ता नहीं आईने की तरह।।


हमने सोचा तुझे हर तरह से मगर,
तुझको देखा नहीं आईने की तरह।

कितने रिश्ते जुड़े फिर भी तन्हा रही,
जीस्त भी है कहीं आईने की तरह।

गुज़रे शामो-सहर देखकर ही तुझे,
अपनी क़िस्मत नहीं आईने की तरह।


तुझको छूकर नहीं छू सका हूँ कभी,
मैं हूँ बेबस कहीं आईने की तरह।


जिसको देखें करें उसकी तारीफ़ ही,
अपनी आदत नहीं आईने की तरह।

जो भी आया यहाँ 'प्रेम' कै़दी हुआ,
दिल से निकला नहीं आईने की तरह।

(रचनाकालः- 1999)