दिल जो टूटे कभी आईने की तरह।
फिर वो जुड़ता नहीं आईने की तरह।।
हमने सोचा तुझे हर तरह से मगर,
तुझको देखा नहीं आईने की तरह।
कितने रिश्ते जुड़े फिर भी तन्हा रही,
जीस्त भी है कहीं आईने की तरह।
गुज़रे शामो-सहर देखकर ही तुझे,
अपनी क़िस्मत नहीं आईने की तरह।
तुझको छूकर नहीं छू सका हूँ कभी,
मैं हूँ बेबस कहीं आईने की तरह।
जिसको देखें करें उसकी तारीफ़ ही,
अपनी आदत नहीं आईने की तरह।
जो भी आया यहाँ 'प्रेम' कै़दी हुआ,
दिल से निकला नहीं आईने की तरह।
(रचनाकालः- 1999)
Tuesday, November 17, 2009
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हमने सोचा तुझे हर तरह से मगर,
ReplyDeleteतुझको देखा नहीं आईने की तरह।
शेर अच्छे है..
- सुलभ
bahut-bahut Dhanyawaad SULABH JI. Aapki Pritkriya mili. yah meri shuruaati ghazalen hain, nai Ghazlon ke liye aage bhi padte rahen Aapki Pritkriayen Aaur sujhab aamantrit aur Swagatmay hain.
ReplyDeleteAapka bahut bahut hi shukriya
Aapka Apna Shaya aur Kavi
PANDIT PREM BAREILLIVI
09211397167, 09210305321
बरेलवी जी कैसे हैं मिजाज आपके?
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